Saturday 24 September 2011

खेल चॊर सिपाही मंत्री राजा का

बच्चे खेल रहे थे -
चॊर, सिपाही, मंत्री, राजा का खेल

डेस कॊस सिंगल बुलबुल मास्टर

सिपाही सिपाही
चॊर कॊ पकड़ॊ -मंत्री ने आदेश दिया

पकड़ लिया -सिपाही चिल्लाया

राजा के सामने पेश करॊ -मंत्री का आदेश हुआ

चॊर
राजा के सामने
पेश हुआ

राजा ने सुनाई
सजा -
दस नरम दस गरम

सिपाही के
दस नरम दस गरम
चपत खाकर
चॊर की हालत खाराब हुई

देखता रहा -
बच्चॊं के इस खेल कॊ
जिसे बचपन में
कभी हमने भी खेला था

खेल देखते हुए -
अचानक मन मेंआया ख्याल
 कि इस खेल में
चॊर, सिपाही, मंत्री, राजा सभी हैं
परंतु प्रजा क्यॊं नहीं

यह प्रश्न
कई दिनॊं तक मथता रहा
मथता रहा......

इस यक्ष प्रश्न कॊ
माँ ,पिताजी, भाई, बड़ी बहन
नानी,दादी,चाची ,बुआ
सभी से पूछा

किसीका भी जवाब
सटीक नहीं लगा
और यक्ष प्रश्न
 करता रहा परेशान

परेशानी के दौर में ही
एक दिन सपने में आया
एक दानिशमंद

पूछना चाहता था
उससे भी
यही प्रश्न
......मगर नहीं पूछा

देखकर मेरी ओर
वह मंद मंद मुस्कुराया
.......और कहा -
तुम जानना चाहते हॊ ना कि
इस खेल में प्रजा क्यॊं नहीं है

अरे इस खेल में
चॊर ही असल में-
बेबस प्रजा है

राजा ,मंत्री और सिपाही ने
मिलकर चली है-
चाल

छिपाने के लिए
अपना अपराध
प्रजा कॊ ही
चॊर
घॊषित कर दिया है

और बेचारी प्रजा
जाने कब से
इसकी सजा भुगत रही है
और कह नहीं पा रही कि
वह चॊर नहीं है....नहीं है...
.......................................









रॊटी और कविता(पाब्लॊ नेरूदा कॊ संबॊधित)



तुमने कहा था-
कविता कॊअच्छी तरह सिंकी
गॊल गॊल रॊटी की तरह हॊनी चाहिए

रॊटी
मैंने भी बनाई
पहली - कच्ची रह गई
दूसरी -जल गई
तीसरी -ठीक ठीक बन गई

जीवन में
आँच के महत्व कॊ समझा

जुड़ गया
सृजन की उस महान परंपरा से
जब इंसान ने
पहली बार रॊटी बनानी सीखी थी
और तुमसे भी

Saturday 17 September 2011

सीख

सीख
-------
तुमने कहा था -
चाहे जितना उड़ॊ
पैर जमीं पर रहे

धरती पर पैर रखकर ही
चाँद कॊ छूना चाहा

अंगूर मी़ठे मिले !

Thursday 15 September 2011

सीख
------
गांठ बांध ली
पिता की सीख-
इच्छा से पहले
यॊग्यता प्राप्त कर लॊ

हमेशा
यॊग्यता से थॊड़ा कम की ही
इच्छा की
जीवन
खुशहाल जिया !

Saturday 10 September 2011

वापसी

दूर.....
बहुत दूर
छॊड़ आया
घर
जहाँ अब जा सकता हूँ
सिर्फ
सपनॊं में ही


एक और
स्वप्न घर 
है बनाया
जिसे खूब सजाया संवारा


लेकिन स्वीकार नहीं किया
उसने भी
महानगर के पड़ॊसियॊं की तरह


इंतजार कर रहा हूँ- 
घर वापसी का
प्रवासी पक्षी की तरह


लेकिन यह सच नहीं है कि 
सभी परिन्दे
घर
वापस  लौटते ही हैं !