Saturday, 10 September 2011

वापसी

दूर.....
बहुत दूर
छॊड़ आया
घर
जहाँ अब जा सकता हूँ
सिर्फ
सपनॊं में ही


एक और
स्वप्न घर 
है बनाया
जिसे खूब सजाया संवारा


लेकिन स्वीकार नहीं किया
उसने भी
महानगर के पड़ॊसियॊं की तरह


इंतजार कर रहा हूँ- 
घर वापसी का
प्रवासी पक्षी की तरह


लेकिन यह सच नहीं है कि 
सभी परिन्दे
घर
वापस  लौटते ही हैं !

4 comments:

  1. कविता महानगरीय जीवन की त्रासदी को व्यक्त करती है।

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  2. Aadmi umra ki kitna bhi sirhri tay ker le, bachpan ki yaad saaye ki tarah saath rahti hai.

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  3. har chhand mein ek sandesh hai . bahut sunder .......

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